नई दिल्ली: शीर्ष अदालत ने गिरफ्तारी के बाद मंत्रियों के पद पर रहने पर रोक लगाने वाली याचिका स्वीकार करने से इनकार कर दिया है। न्यायालय ने कहा कि वह ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि शक्तियों के विभाजन का सिद्धांत पूरी तरह से खत्म हो जाएगा। उल्लेखनीय है कि यह सिद्धांत कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की शक्तियों का विभाजन करता है। इस साल जून में दायर की गई याचिका पर प्रधान न्यायाधीश यू यू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ सुनवाई कर रही थी। पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला भी शामिल हैं। याचिका के जरिये, महाराष्ट्र में मंत्री पद पर रहने के दौरान न्यायिक हिरासत में जेल भेजे गये राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता नवाब मलिक को बर्खास्त करने के लिए तत्कालीन उद्धव ठाकरे सरकार को निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने राष्ट्रीय राजधानी में आम आदमी पार्टी सरकार में मंत्री सत्येंद्र जैन को भी हटाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। जैन को आपराधिक मामलों के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था और वह अभी न्यायिक हिरासत में हैं। न्यायालय ने कहा, ‘हम इस तरीके से अयोग्य नहीं घोषित कर सकते और किसी व्यक्ति को पद से नहीं हटा सकते हैं...खास तौर पर (संविधान के) अनुच्छेद 32 के तहत मिले हमें क्षेत्राधिकार में जिसके तहत एक व्यक्ति सीधे उच्चतम न्यायालय का रुख कर सकता है। हम एक ऐसा प्रावधान लागू नहीं कर सकते जो एक बाध्यकारी कानून बन जाए और किसी को बाहर कर दिया जाए।’ पीठ ने कहा, ‘आपका विचार शानदार है। लेकिन दुर्भाग्य से हम ज्यादा कुछ नहीं कर सकते। अन्यथा, शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत पूरी तरह से खत्म हो जाएगा।’ शीर्ष न्यायालय ने कहा कि कोई मंत्री, जो एक सांसद या विधायक भी है, उसके 48 घंटे से अधिक समय तक न्यायिक हिरासत में रहने पर स्वत: ही निलंबित हो जाने का कानून लागू करना विधायिका के दायरे में आता है। इसके बाद, उपाध्याय ने अपनी याचिका वापस ले ली। याचिका अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे के मार्फत दायर की गई थी।
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