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Tuesday, September 27, 2022

भ्रम में न रहे दुनिया! हिटलर का वो निशान शुभ का प्रतीक नहीं, हिंदुओं के स्वास्तिक की असली कहानी

नई दिल्ली : हिंदुओं के लिए एक प्राचीन और शुभ प्रतीक स्वास्तिक और 20वीं सदी के नाजी प्रतीक हकेनक्रेज को पश्चिमी मीडिया में एक ही बताया जा रहा है। भारत की प्राचीन भाषा संस्कृत में स्वास्तिक सौभाग्य और कल्याण लाने वाला माना जाता है। हिंदू धर्म के इस प्राचीन और शुभ प्रतीक का इस्तेमाल हिंदू मंदिरों, धार्मिक अनुष्ठान और आयोजनों के साथ ही घरों के प्रवेश द्वार के साथ ही दैनिक जीवन में किया जाता है। कोई भी शुभ कार्य करते समय स्वास्तिक का चिह्न जरूर बनाया जाता है। इसे सातिया भी कहते हैं। हिंदू ही नहीं जैन और बौद्ध धर्म में भी इसका उपयोग किया जाता है। ऐसे में नाजी प्रतीक को स्वास्तिक कहना ठीक नहीं है। हकेनक्रेज या हुक्ड क्रॉस नफरत का नाजी प्रतीक है। हिंदुओं के प्रतीक को बदनाम करने की साजिशहाल ही में रूस के इझेवस्क शहर में एक बंदूकधारी शख्स ने अंधाधुंध गोलीबारी कर नौ लोगों की जान ले ली। घटना में लगभग 17 लोग घायल हुए। वेस्टर्न मीडिया में रिपोर्ट किया गया कि हमलावर ने स्वास्तिक के निशान वाली जैकेट पहन रखी थी। दरअसल पिछले कुछ महीनों से अंतरराष्ट्रीय मीडिया में स्वास्तिक को लेकर काफी चर्चा हो रही है। दरअसल, जानबूझकर ‘स्वास्तिक’ को नाजी हकेनक्रेज (हुकेड क्रॉस) से जोड़ा जा रहा है। इसका उद्देश्य यह दर्शाना है कि हिंदू नाजियों से प्रेरणा लेते हैं। यूरोप और अमेरिका का एक बड़ा वर्ग इसे एडोल्फ हिटलर की यहूदी विरोधी, नस्लवादी, फासीवादी और 1933-1945 की थर्ड रैच के प्रतीक रूप में परिभाषित करता है। नाजीवाद के पतन और सेकेंड वर्ल्ड वॉर के खत्म होने के बाद जर्मनी और उसके बाद फ्रांस, ऑस्ट्रिया और लिथुआनिया समेत अन्य यूरोपीय देशों ने हकेनक्रेज पर बैन लगा दिया था। पहले पश्चिमी मीडिया में होता था हकेनक्रेज का इस्तेमालहालांकि, यह पहली बार नहीं है कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया पवित्र हिंदू स्वास्तिक को नाजी प्रतीक से जोड़ा है। कोएलिशन ऑफ हिंदू ऑफ नार्थ अमेरिका इसके खिलाफ लगातार अभियान चलाता रहा है। CoHNA के अनुसार नाजी प्रतीक हिंसा, उत्पीड़न और नरसंहार का उदाहरण है। इस पर कोई विवाद ही नहीं है। हालांकि, इसमें जो विवादित है, वह है शब्द स्वास्तिक शब्द का प्रयोग करना है। वह भी खासकर जब से हिटलर ने अपने प्रतीक का वर्णन करने के लिए कभी भी उस शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। उन्होंने और नाजियों ने बार-बार हकेनक्रेज शब्द का इस्तेमाल किया। उस समय पश्चिमी मीडिया में हकेनक्रेज शब्द का ही इस्तेमाल होता था। 1933 के आसपास न्यूयॉर्क टाइम्स ने प्रतीक के बारे में रिपोर्ट करने के तरीके को बदलना शुरू किया। उस समय पहली बार यह दावा किया गया कि 'हुक्ड क्रॉस' भारत का एक 'स्वास्तिक' जैसा है। यह पहली बार था जब किसी प्रमुख समाचार पत्र ने हिटलर के नफरत के प्रतीक का वर्णन करने के लिए इस शब्द का इस्तेमाल किया था। इसके बाद से एक बदली हुई शब्दावली शुरू हो गई और अभी भी उसे ही बढ़ाया जा रहा है। भारत में उठी पश्चिमी रिपोर्टिंग को लेकर आवाजरूस के मामले में रिपोर्टिंग को लेकर सोशल मीडिया पर लोगों ने आवाज उठाई। कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने इस मुद्दे पर पश्चिमी मीडिया को कटघरे में खड़ा किया। सिंघवी ने अपने ट्वीट में लिखा,स्वस्तिक नहीं, जर्मन हेकेनक्रेज़। भ्रामक हेडलाइन छापने से पहले गार्डियन के पत्रकारों को कुछ पढ़ना चाहिए। CoHNAOfficial ने भी रूस की गोलीबारी की रिपोर्टिंग को लेकर अपने ट्विटर हैंडल से कहा कि गार्डियन और रॉयटर्स के टैग करते हुए लिखा कि कृपया इस भयानक त्रासदी की सटीक रिपोर्ट करें। टीशर्ट पर नाजी चिन्ह का वर्णन करने के लिए शब्द #Hakenkreuz (हुक्ड क्रॉस) होना चाहिए, स्वास्तिक नहीं। सभी नाजी साहित्य और उस युग की समकालीन रिपोर्टिंग में इसी का प्रयोग किया गया है। पश्चिमी देशों में यूज होता था स्वास्तिकअमेरिकी ग्राफिक डिजाइन लेखक स्टीवन हेलर अपनी बुक द स्वस्तिक: सिंबल बियॉन्ड रिडेम्पशन में? बताते हैं कि कैसे इसे पश्चिम में विज्ञापन और प्रोडक्ट डिजाइन पर एक वास्तुशिल्प रूपांकन के रूप में उत्साहपूर्वक अपनाया गया था। कोका-कोला ने इसका इस्तेमाल किया। कार्ल्सबर्ग ने इसे अपनी बीयर की बोतलों पर इस्तेमाल किया। बॉय स्काउट्स ने इसे अपनाया और गर्ल्स क्लब ऑफ अमेरिका ने अपनी पत्रिका स्वास्तिक को बुलाया। वे अपने युवा पाठकों को स्वस्तिक बैज भी बेचते थे। इसका इस्तेमाल प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अमेरिकी सैन्य इकाइयों द्वारा किया गया था। इसे 1939 के अंत में आरएएफ विमानों पर देखा जा सकता था। जर्मनी में 1930 के दशक में नाजियों के सत्ता में आने के बाद इनमें से अधिकांश यूज बंद हो गए थे।


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